“अन्याय के खिलाफ, दमन के खिलाफ, जनता की हिंसा भड़क उठना अस्वाभाविक नहीं है। जब तक एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग को दबाया जायेगा तब तक यह सब वर्ग संघर्ष के चालू नियम से ही होता रहेगा।”
– शंकर गुहा नियोगी
मध्य भारत में जब मजदूर आन्दोलन की बात होती है तो छत्तीसगढ़ के एक बड़े मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी की चर्चा ज़रूर होती है। वर्तमान में जब छत्तीसगढ़ में खनिज संसाधनों की लूट अपने चरम पर है, तब उनके विरोध में चल रहे आंदोलनों के साथ मध्य भारत के मजदूर आन्दोलन के इतिहास को समझना ज़रूरी हो जाता है। इसी कड़ी में शंकर गुहा नियोगी के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के बैनर तले लगभग 3 दशक तक चले खदान श्रमिको के आन्दोलन को समझा जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ का गठन छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में स्थित लौह अयस्क खदान के मजदूरों द्वारा किया गया। यह खदान इसलिए महत्वपूर्ण था क्योकि, यह भारत के बड़े स्टील उत्पादक उद्योगों में से एक भिलाई इस्पात सयंत्र को अयस्क उपलब्ध कराता था।

हर आन्दोलन का इतिहास हमे कुछ न कुछ सिखाता है। मार्क्सवाद हमे इतिहास की घटनाओ से पूर्व में की गई गलतियों को निकाल कर प्रासंगिक चीज़ों को वर्तमान में लागू कर बेहतर समाज के निर्माण में जुझारू संघर्ष की ओर बढ़ने की सीख देता है। कुछ कमजोरियों के बावजूद नियोगी के नेतृत्व से भी ऐसी ही कई सीख ली जानी चाहिए, जो सही वर्ग संघर्ष पर आधारित ट्रेड यूनियन के विभिन्न पहलुओं पर एक ठोस समझदारी बनाने में मददगार होगा। वर्तमान में जब मजदूर वर्ग पर चौतरफा हमले के बीच मजदूर आन्दोलन की तीव्रता और जुझारूपन में जो कमी दिखाई पड़ती है, तब यह भी सोचे जाने की ज़रूरत है कि, इसमें ट्रेड यूनियन की पुरानी समस्या अर्थवाद का ही बड़ा हाथ है या अन्य परिस्थितियों के साथ सभी केन्द्रीय एवं तथाकथित क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियन के एक घिसे-पिटे तरीकों और ट्रेड यूनियन के मार्क्सवादी वैज्ञानिक प्रयोगों के तहत रचनात्मक आंदोलनों की भी कमी है, जो रचनात्मकता हमे छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के आन्दोलन में दिखती है।
नियोगी के नेतृत्व में चलाये गए उसी आन्दोलन के रचनात्मक प्रयोगों को ही हम समझने का प्रयास करेंगे।
संघर्ष और निर्माण ( संघर्ष के लिए निर्माण, निर्माण के लिए संघर्ष)
संघर्ष और निर्माण का सिद्धांत नियोगी द्वारा ट्रेड यूनियन आन्दोलन में जोड़ा गया एक महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस सिद्धांतका प्रभाव पूरे आन्दोलन में बहुत स्पष्ट रूप से दिखता है। नियोगी का यह मानना था कि क्रांति के बाद जिस सुन्दर समाज का हम सपना देखते हैं, उसके विभिन्न पहलुओं को जनता के सामने रखना बहुत ज़रूरी है। इस तरह हम व्यापक जनता को उस सपने से परिचित करा पाते हैं, जिसके लिए लोग क़ुरबानी से भरी इस राह पर चल रहे हैं। ऐसा न कर पाना कुछ हद तक आन्दोलन को बहुत जल्द निराशावादी एवं अंत में संसोधनवादी राहों में धकेलने का कारण बनता है। इसका आधार यही है कि, आर्थिक आन्दोलन के साथ मजदूरों की बढती हुई राजनैतिक चेतना के आधार पर विकल्पों के निर्माण के कार्यक्रम को प्रस्तुत करना। नियोगी के अनुसार संघर्ष और निर्माण हमारे दो पैरों की तरह है – इनमे से केवल एक के सहारे जो चलने की कोशिश करेगा, वह लड़खड़ा कर गिर पड़ेगा, दोनों के बीच तालमेल रखकर ही आगे बढ़ा जा सकता है। इसके तहत नयी सामाजिक व्यवस्था का बीज अंकुरित होता है। शोषण आधारित वर्तमान समाज की भ्रष्ट व सड़ी-गली व्यवस्थाओं व संस्थानों के खिलाफ संघर्ष करते हुए मेहनतकश जनता एक वैकल्पिक समाज का सपना देखने लगती है। आमतौर पर आंदोलनों में इस सपने को विचारों के अमूर्त स्तर पर ही छोड़ दिया जाता है, इसी वजह से समय के साथ यह सपना धूमिल होने लगता है और देर तक संघर्ष का प्रेरणा बिंदु नहीं बन पाता। इस तरह सम्पूर्ण आन्दोलन एक कदम आगे के सपनो को साकार करने की लड़ाई में पूर्ण रूप से भागीदार बनता है। इस आन्दोलन के तहत शहीद अस्पताल, शहीद स्कूल, शहीद गैरेज एवं वर्कशॉप आदि का निर्माण इसके प्रमुख उदहारण के तौर पर उभरे। मजदूरों ने अपने श्रम से, अपने संसाधनों से पूरे मजदूर वर्ग के हित के लिए शहीद अस्पताल का निर्माण कर वैकल्पिक स्वास्थ्य व्यवस्था की ओर एक कदम बढाया, बाकी कार्यक्रम भी इसी क्रम में पूरे किये गए। एक विशेष बात कि, निर्माण का काम सिर्फ कुछ संस्थानों तक सीमित नहीं है नियोगी इसके अंतर्गत एक नयी जनवादी संस्कृति के निर्माण पर जोर देते हैं। संगठन का अपना सांस्कृतिक कार्यक्रम “नवा अंजोर” और जनवादी साहित्य के प्रकाशन के लिए लोक साहित्य परिषद् का निर्माण, मितान साप्ताहिक पत्रिका, सिंचाई हेतु डैम निर्माण इसके उदाहरण हैं।

24 घंटो वाला ट्रेड यूनियन क्यों ज़रूरी है !
दल्ली राजहरा के खदानों में नियोगी के हस्तक्षेप से पहले एटक और इंटक जैसे- ट्रेड यूनियन पहले से मौजूद थे, जो मजदूरों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, पर कुछ ही समय में मजदूरों को इन यूनियनों का मैनेजमेंट के साथ सांठ-गाँठ समझ में आ गई और वो तमाम यूनियनों को त्यागकर छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ का गठन किया , जिसके नेतृत्व की जिम्मेदारी बाद में नियोगी को सौंपी गई। इस दौरान नियोगी भी खदान में ही काम करते थे। अपने विभिन्न लेखों में शुरुआत से ही केंद्रीय ट्रैड यूनियन को सैद्धांतिक तौर पर तीखा हमला करते रहे। इसका अन्य वैचारिक मतभेदों के साथ एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि, इन यूनियन के काम करने का तरीका सिर्फ मजदूरों के जीवन के उस समय को लेकर ही बात करती थी, जो काम के दौरान बिताया जाता था (वह भी कुछ ही हद तक जहाँ तक उनके फायदे न घट रहे हों ) पर नियोगी का यह मानना था कि, कोई भी ट्रेड यूनियन किसी क्रान्तिकारी बदलाव का हिस्सा तब तक नहीं हो सकती, जब तक वह मजदूरों के काम के घंटों के अलावा बाकी की ज़िन्दगी से न जुडी हो। इस तरह न सिर्फ आन्दोलन को अर्थवाद के गड्ढे में गिरने से बचाया जा सकता है बल्कि, मजदूरों के जीवन में जनवादी संस्कृति का विकास भी किया जा सकेगा। संघर्ष के साथ निर्माण की प्रक्रिया यहाँ भी स्पष्ट रूप से झलकता है। मजदूर बस्तियों में पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, घरेलु उत्पीडन, पर्यावरण आदि का काम भी ट्रेड यूनियन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। संगठन के इतिहास में शराब बंदी आन्दोलन का इतिहास भी काफी प्रमुख रहा है। इन विभिन्न पहलुओं में निरंतर काम करने के लिए यूनियन के अन्दर ही 18 विभागों का निर्माण किया गया था। परंतु नियोगी इस बात को लेकर बहुत स्पष्ट थे कि, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि का आन्दोलन कभी मुख्य आन्दोलन नहीं हो सकता। वर्ग संघर्ष को हमेशा केंद्र में रहना होगा।

इसके साथ ही नियोगी उत्पादन संघर्ष और वर्ग संघर्ष की बात करते हैं। नियोगी कहते हैं कि, मजदूर किसान वर्ग हमेशा ही उत्पादन संघर्ष में लगा होता है पर एक ट्रेड यूनियन की जिम्मेदारी यह होनी चाहिए कि वह उसे उत्पादन संघर्ष के साथ वर्ग से भी जोड़े।
ट्रेड यूनियन का नेतृत्व दीर्घकालिक रूप में सही तरह से करने के लिए जनवादी केंद्रित का सिद्धांत बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसी को नियोगी छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ मे लागू करने का प्रयास कर रहे थे, अपने एक लेख में वे लिखते हैं –
“प्रश्न उठाने पर, संगठन के बड़े आकार का बहाना लेकर इसकी बात टाल दी जाती है। अंततः कार्य पद्धति में जो भी जनवादी प्रक्रिया का इस्तेमाल होता है, उससे ‘जन’ गायब हो जाता है और केवल ‘वाद’ बचा रहता है, फिर ‘वाद’ को लेकर ‘विवाद’ पैदा होता है। जितने सर उतने ही मत और उतने ही पथ। इस प्रकार बहु-केन्द्रीयता से संगठन का शरीर कैंसर की बीमारी का घर बन जाता है। आज की कई सोशलिस्ट ट्रेड यूनियनों की ऐसी ही दयनीय स्थिति हो गयी है।”
अंत में वे कहते हैं –
“मात्र जनवादी केन्द्रीयता की पद्धति ही ट्रेड यूनियन की सही पद्धति हो सकती है।”
ट्रेड यूनियन लीडरशिप
किसी भी आन्दोलन का भविष्य काफी हद तक उनके नेतृत्व पर टिका होता है। एक सही ट्रेड यूनियन की कार्य पद्धति, कार्यक्रम, दिशा क्या होगी वर्ग संघर्ष के व्यापक मोर्चे पर इसकी क्या भूमिका होगी यह सब प्रश्न किसी भी संगठन के लिए महत्वपूर्ण होंगे। नियोगी भी संगठन के नेतृत्व को लेकर काफी गंभीर और परिपक्व विचार रखते थे। हालांकि, नेतृत्व को लेकर अपने इस सोच को लागू कर पाने में कहीं कोई कमी रही, जिसके कारण बाद में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व भी आन्दोलन को सही दिशा में संचालित नहीं कर पाया। परन्तु नेतृत्व के सवाल पर नियोगी के विचारों को समझना आवश्यक है। किसी भी ट्रेड यूनियन के नेतृत्व के लिए नियोगी वर्ग संघर्ष की सही समझदारी की कसौटी को प्राथमिक स्थान पर रखते है अर्थात उनके अनुसार सही नेतृत्व वही है जो सबसे ज्यादा वर्ग सचेतन है। इसके आगे उन्होंने सबसे ज्यादा जोर जिस बात पर दिया वह है कि, किसी भी मजदूर आन्दोलन का नेतृत्व हमेशा सर्वहारा वर्ग के हाथ में ही होना चाहिए। मजदूर किसानो का नेतृत्व मजदूर किसान की पार्टी के लोगों से होता है, जो मजदूर किसानो की राजनीती से जुडी होती है।

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक क्षेत्रों के मद्देनज़र जहाँ विभिन्न राज्यों से लोग रोजगार की तलाश में आते हैं और अधिकांशतः यह देखा गया की राजनितिक पार्टियाँ छत्तीसगढ़ियां – बिहारी छत्तीसगढ़ियां – तेलुगु आदि के नाम पर विवाद पैदा कर व्यापक वर्ग आधारित एकता को बनने में रुकावटें पैदा करती है। सच्चाई यह है कि, मजदूरों का कुछ आर्थिक जीवन यहाँ जुड़ा है, पर अभी भी उनके राष्ट्रीय और सांस्कृतिक जड़ें उनके मूल स्थानों पर जमी होती है। नियोगी का स्पष्ट मत था कि, इन तमाम चीजों को ध्यान में रखते हुए एक ट्रेड यूनियन को वर्ग आधारित एकता पर विश्वास रखना चाहिए और व्यापक मजदूर एकता बनाने की ओर आगे बढ़ना चाहिए।
इसके आगे नियोगी नेतृत्व के लिए जिन 4 प्रमुख कार्यों की बात करते हैं वे – वर्ग संघर्ष, उत्पादन संघर्ष, वैज्ञानिक प्रयोग और इतिहास का अध्ययन हैं । वे नेतृत्व को हमेशा अर्थवाद, संशोधनवाद, वामपंथी भटकाव, और वैचारिक दिवालियापन से बचने की सलाह देते हैं और इन सभी से बचने के लिए ही वर्ग संघर्ष, उत्पादन संघर्ष, वैज्ञानिक प्रयोग और इतिहास का अध्ययन को चार स्तम्भ के रूप में खड़ा करते हैं। यहाँ इतिहास का अध्ययन पर जोर देने का आशय सिर्फ अध्ययन ही नहीं होना चाहिए बल्कि, उन इतिहास से सीख लेकर भविष्य के कार्यक्रम तय करने चाहिए। इसे नियोगी इस प्रकार से स्पस्ट करते हैं –
”जहाँ पूंजीपति वर्ग एवं हर प्रकार के साम्राज्यवादी, इतिहास की घटना और वस्तुगत परिस्थिति से सीख लेते हैं, वहां आज भारत के ट्रेड यूनियनवादी लोग उसे दोहराने की सोचते हैं।“

इसी कड़ी में एक सबसे महत्वपूर्ण सवाल आता है कि ट्रेड यूनियन आन्दोलन में बुद्धिजीवी वर्ग की क्या भूमिका है इस पर नियोगी बहुत ही स्पष्ट जवाब देते हैं –
“बुद्धिजीवी वर्ग आन्दोलन के लिए लिए बहुत ही आवश्यक है पर यह हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए कि आंदोलन का नेतृत्व हमेशा मजदूर वर्ग के हाथ में हो।“
मशीनीकरण
दल्ली राजहरा के आन्दोलन में अन्य लड़ाइयों के साथ एक सबसे प्रमुख लड़ाई जो लड़ी गयी थी, उसमें मशीनीकरण के खिलाफ एक थी। इस लड़ाई ने न सिर्फ मशीनीकरण का पुरजोर विरोध किया बल्कि, बढ़ते हुए हालात के अनुसार एक वैकल्पिक उपाय खोज उसे लागू भी कराया। जब राजहरा माइंस के पूर्ण मशीनीकरण की योजना प्रस्तुत हुई तब संगठन ने प्रमुख आधार – मशीनीकरण से व्यापक स्तर पर होने वाले मजदूरों की छटनी और जिनसे खनिज संसाधन लिए जा रहे हैं। इसके विकल्प के रूप में संगठन ने अर्द्ध मशीनीकरण का प्रस्ताव रखा। यह सिद्धांत पूर्ण मशीनीकरण का पुरजोर विरोध करता है तथा यह भी कहता है कि, अयस्क खनन (रेजिंग) का काम मजदूरों द्वारा किया जाता है तो सिर्फ इसके आगे की प्रक्रिया मशीनों के द्वारा होगी। परंतु इसे सिर्फ प्रयोग बतौर ही स्वीकार किया गया। यह प्रयोग मौजूदा राष्ट्रीय सन्दर्भ में खनन की इन बुनियादी प्रक्रियाओं के बारे में एक नए सिरे से सोचने के लिए मार्ग प्रसस्त कर सकता था। इसके साथ ही नियोगी मशीनीकरण के मूदे पर एक और महत्वपूर्ण पहलू जोड़ते हैं –
“हमारी उत्खनन नीति हमारे विदेशी माई-बापों की बाज़ार नीति के अनुसार बदलती रहती है। साम्राज्यवादी देश किसी तयशुदा नीति के अंतर्गत अपना माल बेचकर मुनाफा कमाने से संतुष्ट नहीं होते हैं। ये टेक्नोलॉजी परिवर्तन करके और भी ज्यादा मुनाफे की ताक में रहते हैं और इस प्रकार किसी भी देश के अपनी मिट्टी से जुड़े हुए तकनीकी विकास और उत्पादन नीति को विकृत कर देता है।“

ट्रेड यूनियन आन्दोलन के महत्व को समझाने से लेकर उसे जुझारू रूप से चलाने तक के सफ़र में नियोगी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। नियोगी अपने अधिकांश लेखों में मार्क्सवादी –लेनिनवादी विचारधारा की बात करते हैं, परन्तु कुछ ऐसी कमजोरियां आन्दोलन में रह गयी, जिसके कारण आन्दोलन को ठोस क्रांतिकारी रूप प्रदान न हो सका। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा ने विभिन्न चुनावों में अपने विचारों के प्रचार-प्रसार हेतु उम्मीदवार प्रस्तुत किये, परन्तु चुनावी राजनीती में भाग लेने के पीछे दिए गए कारण इसके लिए पर्याप्त नज़र नहीं आते। इसी तरह चूँकि, नियोगी के हत्या से पहले तक भी संगठन के अन्दर ऐसा नेतृत्वकर्ता भी खड़े नहीं हो पाए, जो इस आन्दोलन को सही दिशा में ले जा पाते और फलस्वरूप पूरा आन्दोलन पतन की ओर जा पहुंचा। हालांकि, नियोगी के हत्या के बाद संगठन में हुए विभिन्न स्प्लिट में से कुछ चुनिन्दा लोगों ने सही क्रान्तिकारी दिशा में काम करने की कोशिश की और अभी भी कर रहे हैं और संघर्ष के व्यापक मोर्चे पर डटे हुए हैं। परंतु अधिकांश नेतृत्वकर्ता कहीं न कहीं उन्ही पुरानी आलोचनाओं के शिकार हुए जिनका नियोगी ज़िक्र कर रहे थे। अपने मृत्यु के समय के पहले तक भी उन्होंने इस बात को अपने अंतिम लेख में इस तरह प्रस्तुत किया था –
“मेरे मृत्यु के बाद एक ऐसे नेतृत्व को कायम करना होगा, जिस नेतृत्व को इस बात का यकीन होना चाहिए कि, हम सही दिशा में इस आन्दोलन को ले के जायेंगे। हमारे आन्दोलन में रचना और संघर्ष यह दो मुख्य बातें है। यानि रचनात्मक कार्य करना होगा और शोषण – हर शोषण और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष भी जारी रखना होगा……………राजनीतिक रूप से हमारे निकटतम हैं ,पीपुल्स वार ग्रुप और आई.पी.एफ.।”
इसके आगे नियोगी दोनों ही संगठनो से अपने मतभेदों को भी स्पष्ट रूप से आगामी नेतृत्व के सामने रखते है और अंत में कहते हैं कि-
“मै समझता हूँ की, एक दिन ऐसा भी आएगा की भारत में एक सही ढंग की मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी बनेगी। उस दिन छत्तीसगढ़ के हमारे क्रान्तिकारी साथियों को मै निवेदन करूँगा, उस दिन उस मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी के साथ मिलके उन्हें भी नयी दुनिया या नया समाज रचने में सबको सहयोग देते हुए आगे बढे।”
इस तरह नियोगी के पूरे विचार को आन्दोलन में लिखे गए एक गीत से समझा जा सकता है –
जन संगठन, जन आन्दोलन, जन युद्ध के रस्ता म आगू बढ़ो
छत्तीसगढ़ के मुक्ति के खातीर संगी इही जतन करो !!!!!!!
– Geet, Law Student, University of Delhi
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